नरेंद्र सिंह नेगी जी हां नाम ही काफी है
अंदाज़े बयाँ के लिए। जो हमेशा निखरते आये हैं अपने पहाड़ के लिए।पीढियां आगे बढ़ रही हैं और इनका गायिकी का अंदाज़ भी पीढ़ी दर पीढ़ी बदल रहा है।आवाज़ वही मखमली और सुरमई।पहाड़ में शायद ही कोई ऐसी हस्ती होगी जो इनकी आवाज़ से अछूता हो।नदियां, जंगल,धूप,छाया, पेड़,पर्वत,मिलन, विदाई,कोई ऐसी कोई रस्म नही जिसे इनके कंठ ने स्पर्श न किया हो।आजकल के दौर में गानों में बहुत कुछ मिलाकर लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है और वो नाम भी कमा रहे हैं पर उन सब के बीच आप जब भी नया कुछ करते हैं वो बहुत ही उम्दा होता है क्योंकि आपकी आवाज में एक पहाड़ बसता है।और हम लोग आपकी आवाज के माध्यम से पहाड़ को ज्यादा बखूबी जानते हैं। और हम बहुत ही भाग्यशाली हैं कि आपकी आवाज के माध्यम से हमने पहाड़ को बहुत करीब से देखा ।धन्यवाद एक और प्रस्तुति के लिए